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गीत(हल्की-हल्की ठंड)

गीत(हल्की-हल्की ठंड)

हल्की-हल्की ठंड लिए ऋतु,
आई शरद सुहावन है।
निर्मल-नीला अंबर ऊपर-
शीतल शशि मन-भावन है।।

विविध गुलाबों की सुगंध सँग
खिली रात की रानी भी।
कास-पुष्प की कहे धवलिमा,
वर्षा विगत कहानी भी।
खिली कमलिनी सरोवरों में-
लगती परम लुभावन है।
      हल्की-हल्की ठंड.............।।

हल्की-हल्की हवा बहे जब,
तन में सिहरन तब होती।
इसे गुलाबी जाड़ा कहते,
नहीं प्रकृति गरिमा खोती।
आधा शरद-गरम यह मौसम-
लगता कितना पावन है।
       हल्की-हल्की ठंड...............।।

धान कटेगा,खेत जुतेंगे,
गेहूँ-रबी-फसल होगी।
फूलेंगी सरसों भी खुश हो,
पीली अवनि-चुनर होगी।
महि को बना नई दुल्हन ऋतु-
बनती चित-हर्षावन है।।
        हल्की-हल्की ठंड...........।।

जब यह बढ़कर हाड़ कँपाती,
देती कष्ट सभी जन को।
ऊनी कंबल और रजाई,
तब देते सुख तन-मन को।
पर देती पुनि यह वसंत भी-
जो केवल सुख-आवन है।।
       हल्की-हल्की ठंड............।।

यदि वसंत को राजा कहते,
शरद सभी ऋतु-रानी है।
नशा-ख़ुमारी ऋतु वसंत की,
समझो,शरद-जवानी है।
ऋतुएँ देतीं सुख जीवन को-
जीवन आवन-जावन है।
          हल्की-हल्की ठंड लिए ऋतु,
           आई शरद सुहावन है।।
                     ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                         9919 446372

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2 Comments

Gunjan Kamal

10-Nov-2023 05:24 AM

👏👌

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Varsha_Upadhyay

05-Nov-2023 10:03 PM

Nice 👍🏼

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